Tuesday 27 December 2011

Honesty is the best policy: भारत में भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी/

Honesty is the best policy: भारत में भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी/: भारत में भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी इस बात से कोई भी इनकार नहीं कर सकता कि इन दिनों भारत में हर क्षेत्र में, भ्रष्टाचार चरम पर है| भ्रष्टाचार ...

भारत में भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी/

भारत में भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी

इस बात से कोई भी इनकार नहीं कर सकता कि इन दिनों भारत में हर क्षेत्र में, भ्रष्टाचार चरम पर है| भ्रष्टाचार के ये हालात एक दिन या कुछ वर्षों में पैदा नहीं हुए हैं| इन विकट हालातों के लिये हजारों वर्षों की कुसंस्कृति और सत्ताधारियों को गुरुमन्त्र देने के नाम पर सिखायी जाने वाली भेदभावमूलक धर्मनीति तथा राजनीति ही असल कारण है| जिसके कारण कालान्तर में गलत एवं पथभ्रष्ट लोगों को सम्मान देने नीति का पनपना और ऐसे लोगों के विरुद्ध आवाज नहीं उठाने की हमारी वैचारिकता भी जिम्मेदार है|
आजादी के बाद पहली बार हमें अपना संविधान तो मिला, लेकिन संविधान का संचालन उसी पुरानी और सड़ीगली व्यवस्था के पोषक लोगों के ही हाथ में रहा| हमने अच्छे-अच्छे नियम-कानून और व्यवस्थाएँ बनाने पर तो जोर दिया, लेकिन इनको लागू करने वाले सच्चे, समर्पित और निष्ठावान लोगों के निर्माण को बिलकुल भुला दिया|

दुष्परिणाम यह हुआ कि सरकार, प्रशासन और व्यवस्था का संचालन करने वाले लोगों के दिलोदिमांग में वे सब बातें यथावत स्थापित रही, जो समाज को जाति, वर्ण, धर्म और अन्य अनेक हिस्सों में हजारों सालों से बांटती रही| इन्हीं कटुताओं को लेकर रुग्ण मानसिकता के पूर्वाग्रही लोगों द्वारा अपने चहेतों को शासक और प्रशासक बनाया जाने लगा| जो स्वनिर्मित नीति अपने मातहतों तथा देश के लोगों पर थोपते रहे|

एक ओर तो प्रशासन पर इस प्रकार के लोगों का कब्जा होता चला गया और दूसरी ओर राजनीतिक लोगों में आजादी के आन्दोलन के समय के समय के जज्बात् और भावनाएँ समाप्त होती गयी| जिन लोगों ने अंग्रेजों की मुखबिरी की वे, उनके साथी और उनके अनुयाई संसद और सत्ता तक पहुँच स्थापित करने में सक्षम हो गये| जिनका भारत, भारतीयता और मूल भारतीय लोगों के उत्थान से कोई वास्ता नहीं रहा, ऐसे लोगों ने प्रशासन में सुधार लाने के बजाय खुद को ही भ्रष्टाचार में आकण्ठ डूबे अफसरों के साथ मिला लिया और विनिवेश के नाम पर देश को बेचना शुरू कर दिया|

सत्ताधारी पार्टी के मुखिया को कैमरे में कैद करके रिश्‍वत लेते टीवी स्क्रीन पर पूरे देश ने देखा, लेकिन सत्ताधारी लोगों ने उसके खिलाफ कार्यवाही करने के बजाय, उसका बचाव किया| राष्ट्रवाद, संस्कृति और धर्म की बात करने वालों ने तो अपना राजधर्म नहीं निभाया, लेकिन सत्ता परिवर्तन के बाद यूपीए प्रथम और द्वितीय सरकार ने भी उस मामले को नये सिरे से देखना तक जरूरी नहीं समझा|

ऐसे सत्ताधारी लोगों के कुकर्मों के कारण भारत में भ्रष्टाचार रूपी नाग लगातार फन फैलाता जा रहा है और कोई कुछ भी करने की स्थिति में नहीं दिख रहा है| सत्ताधारी राजनैतिक गठबन्धन से लेकर, सत्ता से बाहर बैठे, हर छोटे-बड़े राजनैतिक दल में भ्रष्टाचारियों, अत्याचारियों और राष्ट्रद्रोहियों का बोलबाला लगातार बढता ही जा रहा है| ऐसे में नौकरशाही का ताकतवर होना स्वभाविक है| भ्रष्ट नौकरशाही लगातार मनमानी करने लगी है और वह अपने कुकर्मों में सत्ताधारियों को इस प्रकार से शामिल करने में माहिर हो गयी है कि जनप्रतिनिधि चाहकर भी कुछ नहीं कर सकें|

ऐसे समय में देश में अन्ना हजारे जी ने गॉंधीवाद के नाम पर भ्रष्टाचार के खिलाफ अनशन करके सत्ता को झुकाने का साहस किया, लेकिन स्वयं हजारे जी की मण्डली में शामिल लोगों के दामन पर इतने दाग नजर आ रहे हैं कि अन्ना हजारे को अपने जीवनभर के प्रयासों को बचाना मुश्किल होता दिख रहा है|

ऐसे हालात में भी देश में सूचना का अधिकार कानून लागू किया जाना और सत्ताधारी गठबन्धन द्वारा भ्रष्टाचार के मामले में आरोपी पाये जाने पर अपनी ही सरकार के मन्त्रियों तथा बड़े-बड़े नेताओं तथा नौकरशाहों के विरुद्ध कठोर रुख अपनाना आम लोगों को राहत प्रदान करता है|

अन्यथा प्रपिपक्ष तो भ्रष्टाचार और धर्म-विशेष के लोगों का कत्लेआम करवाने के आरोपी अपने मुख्यमन्त्रियों को उनके पदों से त्यागपत्र तक नहीं दिला सका और फिर भी भ्रष्टाचार के खिलाफ गला फाड़-फाड़ कर चिल्लाने का नाटक करता रहता है!

खुद को बदलो, दुनिया बदल जाएगी


 

खुद को बदलो, दुनिया बदल जाएगी

खुद को बदलो, दुनिया अपने आप बदल जाएगी। लकीर पीटने से आदमी बेवक्त बूढ़ा हो जाता है। सोच संकुचित हो जाती है और फिर शुरू हो जाता उसका चतुर्दिक ह्रास। यह कहना है जाने माने कार्टूनिस्ट, चित्रकार आबिद सूरती का। गुरुवार को इलाहाबाद संग्रहालय में सृजन परिवेश व्याख्यानमाला के तहत श्री सूरती ने अपने तजुर्बे को बखूबी श्रोताओं के बीच बांटा। कहा कि हर आदमी अपने वक्त की सोच के साथ आगे बढ़ता है। जब हम किसी के बारे में नकारात्मक सोचते हैं तो उसका सबसे पहला असर अपने ऊपर ही पड़ता है। इसलिए हमेशा नकारात्मक सोच से दूर रहना चाहिए। परंपराएं अच्छी होती हैं लेकिन उनके पीछे भौगोलिक परिवेश की भी अहम् भूमिका होती है। अत: परंपराओं का अंधानुकरण करने के पहले अपने मन से ही सवाल उठाने चाहिए। जब सवालों के जवाब मिल जाएं तो समझिए कि परंपराएं समसामयिक व जीवनोपयोगी हैं।
श्री आबिद ने कहा 'मैं जानकर चलने वालों में से हूंॅ, मानकर चलने वालों में नहीं।' अपने दिमाग को हमेशा सचेत रखने की जरूरत है ताकि कोई नकारात्मक बाहरी तत्व उसमें अनावश्यक प्रवेश न कर सकें। उन्होंने अनेक ऐतिहासिक उदाहरणों से अपनी बात पुष्ट भी की। हास्य का पुट लिए अपने व्याख्यान में उन्होंने कहा कि आज जरूरत है नई सोच की।
कार्यक्रम की शुरुआत संग्रहालय के नए निदेशक नरेश पुरोहित के स्वागत भाषण से हुई। उन्होंने मंचासीन अतिथियों का स्वागत किया। अध्यक्षता साहित्यकार गिरीश पाण्डेय ने की। संचालन डा. राजेश मिश्र ने की। इस मौके पर संग्रहालय के पूर्व निदेशक डा. एसके शर्मा, उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र के निदेशक आनन्द वर्धन शुक्ल, डा. अजय जेटली, डा. विभा मिश्रा, डा. प्रभाकर पाण्डेय, अनिल रंजन भौमिक आदि उपस्थित रहे।
संगम दर्शन कर मनाया जन्मदिन
इलाहाबाद : आबिद सूरती ने गुरुवार को संगम के दर्शन किए। कहा कि 'संगम में जन्मदिन मनाने की वर्षो की हसरत आज पूरी हुई।' श्री आबिद ने एक कला पारखी की ही भांति कम और सधे हुए शब्दों में अपने अनुभव बांटे और युवा पीढ़ी को नसीहत भी दी। जल सरंक्षण अभियान में युवाओं से अपील कि वे ऐसे सामाजिक कार्यो में बढ़चढ़कर हिस्सा लें।

Honesty is the best policy

Honesty is the best policy
जब हम स्कूल में पढ़ते थे तब हमें सिखाया गया था कि ‘ Honesty is the best policy ‘. यह हमारे पीढी के हम जैसे लोगों के लिए सबसे महत्वपूर्ण दिशा निर्देशक सूत्र था. अंग्रेजों की गुलाम से देश आज़ाद हुआ था. महात्मा गाँधी, पंडित जवाहर लाल नेहरु, सरदार पटेल, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, डा. भीम राव अम्बेडकर, डा. राजेन्द्र प्रसाद, राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन, डा. श्यामा प्रसाद मुख़र्जी , मौलाना अब्दुल कलाम आज़ाद, चक्रवर्त्ती राजगोपालाचारी, आचार्य नरेंद्र देव, जय प्रकाश नारायण, पंडित गोविद बल्लभ पन्त, लाल बहादुर शास्त्री, आचार्य कृपलानी, डा राम मनोहर लोहिया, शहीद भगत सिंह, चन्द्र शेखर आज़ाद, पंडित राम प्रसाद बिस्मिल हमारे ‘ रोल माडल ‘ और आदर्श होते थे. यह लिस्ट किसी भी मायने में सम्पूर्ण नहीं है. बहुत से नाम छूट गए हैं. इनका ज़िक्र आते ही या इनकी तस्वीर के भी दर्शन मात्र से मस्तिष्क श्रद्धा से झुक जाता था. हम इनसे प्रेरणा लेते थे. हर बच्चा इनके जैसा बनना चाहता था. इनकी सादगी, ईमानदारी और आदर्श व्यवहार के उदाहरण आज भी दिए जाते हैं. ये हमारे लिए अनुकरणीय हैं. आज पाता हूँ कि आज़ादी के ठीक बाद से लेकर अब तक सब कुछ बदल गया है. Honesty अब best policy नहीं रह गई है. ईमानदार और सीधे सच्चे आदमी को बेवकूफ समझा जाता है, और बेईमान और तिकडमबाज को चालाक, होशियार, बुद्धिमान और प्रतिभावान. मैं पाता हूँ कि इस नए वातावरण में मैं ‘ मिसफिट ‘ हूँ. जीवन की वास्तविकता कुछ और ही है. आज जो जितना ही धनी है, उतना ही प्रतिष्ठित है, चाहे पैसा कितने ही गलत तरीके से कमाया गया हो. और अगर उसके यहाँ इनकम टैक्स का छापा पड़ा हो तो प्रतिष्ठा में चार चाँद लग जाते हैं. हवाला डीलरों, स्मगलरों, विदेशी बैंकों में धन जमा करने वालों, टैक्स चोरों काला धन वालों की चांदी है. जो जितना बड़ा बेईमान, तिकडमबाज और अपराधी है उसकी समाज में उतनी ही और ज़्यादा प्रतिष्ठा. चारों ओर लूट खसोट, चोरी, हत्या, बलात्कार, अराजकता का बोलबाला है. राजनीति में अनुकरणीय कोई नहीं रह गया है. राजनीति में हत्या बलात्कार जैसे घृणित अपराधों में आरोपित लोगों का प्रवेश हो गया है. कुछ तो न केवल सदन और विधायिका में प्रवेश कर गए हैं बल्कि मंत्रिपद की कुर्सियां भी सुशोभित कर रहे हैं. सीधे सादे, सच्चे और ईमानदार आदमी का अस्तित्व संकट में है. आज के रोल माडल हैं फिल्म कलाकार शाहरुख खान, सलमान खान, आमिर खान, सैफ अली, कटरीना कैफ, इत्यादि. इनको पद्म श्री जैसी उपाधियों से नवाजा जाता है. मीडिया को देश की ज्वलंत समस्याओं जैसे गरीबी, बीमारी, भुखमरी, बेरोजगारी से कोई सरोकार नहीं रह गया है. टी वी मीडिया राखी सावंत और राहुल महाजन जैसों के स्वयंबर पर ‘ फोकस ‘ करता है. ऐसा लगता है देश में इससे बढ़कर कोई समस्या नहीं रह गयी है. टी वी और फिल्मों नें लोगों की पसंद को, रूचि को विकृत कर दिया है, लेकिन कहा जाता है कि दर्शक यही पसंद करता है. ये लोग कहते हैं कि हम वही परोसते हैं जो दर्शक माँगता है यह एक कुतर्क से ज़्यादा कुछ नहीं है. हमें इस बात पर विचार करना होगा कि हम देश को किस दिशा में ले जाना चाहते हैं. हमारे आदर्श क्या होने चाहिए. क्या राष्ट्र निर्माण इसी प्रकार होता है. क्या हमारा रास्ता सही है. मैथिली शरण गुप्त ने लिखा है ‘ हम कौन थे क्या हो गए हैं, और क्या होंगे अभी, आओ विचारें आज मिलकर यह समस्याएं सभी. ‘